Saturday 14 September 2013

हिंदी दिवस विशेष

                                                       हिंदी दिवस विशेष

                एक भाषा केवल इन्सान की भावनाओं की अभिव्यक्ति का माध्यम ही नहीं, बल्कि एक पूरे राष्ट्र को जोड़ने वाली कड़ी भी होती है । जब मनुष्य अपनी राष्ट्र भाषा को सम्मान देने लगता है तो उसके मन में देश प्रेम अपने आप जागने लगता है । यही देश प्रेम की भावना देश को वैश्विक स्तर पर ऊँचा दर्जा और सम्मान दिलाती है । सीधी सी बात है,जब अपने देश के लोग अपनी भाषा को सम्मान नहीं देंगे, तो दूसरे मुल्कों के लोगों से क्या आशा की जा सकती है?
                आज़ादी के 66 सालों बाद भी भारत आज English का ग़ुलाम है । आज भी कोई भारतीय अपने ही देश में हिंदी में बात करता है तो उसे दोयम दर्जे का माना जाता है, अनपढ़ गवार समझा जाता है । फर्राटेदार English बोलने वालों को पढ़ा-लिखा और सभ्य माना जाता है । मैं मानती हूँ कि शिक्षा इन्सान में नैतिक मूल्य और इंसानियत भरने के लिए होती है, उसे अंग्रेजी घोड़ा बनाने के लिए नहीं । 
                जो देश भाषा में गुलाम हो, किसी बात में स्वाधीन नहीं हो सकता । और यह तो एक पारदर्शी कसौटी है, जिन्हें हिंदी को राष्ट्र भाषा मानने में आपत्ति है, वह भारत को फिर से विभाजन की कगार तक ज़रूर पहुंचाएंगे । ऐसा हो भी रहा है, तेलंगाना बनने की एक वजह ये भी थी कि वहां के क्षेत्रीय लोग एक ऐसा राज्य चाहते थे जिसकी प्रथम भाषा उर्दू हो । इतिहास गवाह है कि जब भी कहीं विभाजन हुआ है, वहां स्थितिया सुलझी कम और बिगड़ी ज्यादा हैं, चाहे वो एक घर का बंटवारा हो या एक देश का । 
                इसे पढ़ते हुए पाठकों को लग रहा होगा कि मैं English के विरुद्ध हूँ, मैं किसी भाषा के विरुद्ध नहीं, बल्कि मैं तो सिर्फ हिंदी को राष्ट्र भाषा का सम्मान दिलाने के हक़ में हूँ । चाहती हूँ कि विद्यालयों में हिंदी उतने ही सम्मान से पढाई जाये, जितने कि English । युवा भारतीय इसे उतना ही महत्त्व दें, जितना वो English को देते हैं । इस पर कुछ लोग कह सकते हैं कि संविधान में हिंदी को राष्ट्र भाषा औपचारिक रूप से कभी घोषित नहीं किया गया तो उनकी जानकारी के लिए बता दूँ कि संविधान में अनुच्छेद 343 के अंतर्गत प्रावधान ये था कि हिंदी भारतवर्ष की राजभाषा और English सह-भाषा होगी । परन्तु तब अंग्रेजों के शासनकाल में चल रहे राजकीय कामों और अदालती मुकद्दमों को निपटाने के लिए तब 1965 तक English के प्रयोग की बात कही गयी थी ताकि हम धीरे धीरे अपनी भाषा तक आ सकें परन्तु हुआ ये नए सरकारी काम भी सब English में होने लगे और English देश की राजभाषा और हिंदी सह-भाषा बन कर रह गयी । 
                सोचने की बात ये है कि जिस देश की अधिकतम जनता हिंदी समझती हो, बोलती हो, उसे English न आने की वजह से नौकरी नहीं मिलती, उसके वजूद को छोटा समझा जाता है और हर जगह नकारा जाता है, भारत के गावों में बसने वाली भोली-भाली जनता को छला जाता है । और ऐसा हमारे देश में ही होता है । बाकि देशों में देश के अन्दर किसी भी नौकरी के लिए अंग्रेजी आना आवश्यक नहीं । अभी पिछले कुछ दिनों की ही बात है, जापान के प्रधानमन्त्री मोरी बराक ओबामा से मिलने गये तो बकायदा उन्हें English में "hello, how are you" तक बोलना सिखाया गया । फिर भी जापान किसी दर्जे में भारत से, यूरोप से या अमेरिका से पीछे नहीं है । ऊँचा ओहदा पाने के लिए काबिलियत सोच में और काम में चाहिए होती है, न कि फर्राटेदार English बोलने में ।    
                हर वर्ष 14 सितम्बर को "हिंदी दिवस" मनाया जाता है, अगर भारतीय लोग इसे अपना समझे तो साल में किसी एक दिन इसे मनाने की ज़रूरत ही नहीं रहेगी । लार्ड मैकाले ने ठीक ही कहा था कि जब तक भारत को संस्कृति और भाषा के स्तर पर गुलाम नहीं बनाया जायेगा,तब तक सही मायनों में इसे गुलाम बनाना संभव नहीं होगा । अब ये निर्णय तो हमें लेना है कि हमें इस गुलामी से कितनी जल्दी बहार आना है । ऐसा नहीं हुआ तो अफ़सोस भारत हमेशा के लिए "India" बनकर रह जायेगा, देखने में आज़ाद पर वास्तव में गुलाम । फैसला आप पर है ।                           

                जय हिन्द, जय हिंदी ।


4 comments:

  1. its damn ...... inspiring great admiration fo english indians..... hope dey understand ....gazab ka likha bharti ji ......!!! bless yea....

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