Pratibimb
Sunday, 25 April 2021
गौरा -एपिसोड 1
Tuesday, 5 May 2020
Book Review: The Zahir by Paulo Coelho
Tuesday, 7 April 2020
मनोदशा
Wednesday, 9 October 2019
ਡਰ
ਮੈਨੂੰ ਡਰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ,
ਉਸਦੀ ਵਾਰ ਵਾਰ ਦੀ ਨਾਂ ਤੋਂ,
ਉਸਦੇ ਅਸਥਿਰ ਖ਼ਿਆਲਾਂ ਤੋਂ,
ਜੋ ਭੱਜਦੇ ਨੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ|
ਤੇ ਮੈੰ, ਮੈੰ ਪਿੱਛੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦੀ ਹਾਂ, ਬਹੁਤ ਪਿੱਛੇ|
ਫਿਰ ਸੋਚਦੀ ਹਾਂ ਕਿ ਫੜ੍ਹ ਕਿ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਰੱਖ ਸਕਦੀ,
ਜਿਸਨੇ ਵਾਪਿਸ ਆਉਣਾ ਹੈ, ਆਪੇ ਆਵੇਗਾ|
ਪਰ ਫਿਰ ਡਰ ਜਾਂਦੀ ਹਾਂ,
ਜੇ ਵਾਪਿਸ ਨਹੀਂ ਆਇਆ ਤੇ?
ਕਿ ਮੈਂ ਤਿਆਰ ਹਾਂ ਉਹਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਲਈ?
ਕਿ ਮੈਂ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਪਾ ਰਹੀ ਹਾਂ? - ਸ਼ਾਇਦ ਨਹੀਂ|
ਸ਼ਾਇਦ ਮੇਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਇਹੀ ਲੇਖ ਹੈ,
ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰਨਾ|
ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਵੀ ਪਤਾ ਹੈ,
ਕਿ ਮੈਂ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਗਈ,
ਤਾਂ ਵਾਪਿਸ ਨਹੀਂ ਆ ਪਾਵਾਂਗੀ, ਕਦੇ ਵੀ ਨਹੀਂ|
Tuesday, 13 August 2019
I won't quit "working"
A struggling girl
Saturday, 20 July 2019
A Heart that over-feels❣️
"Dil se nhi Dimaag se socha karo" - Has anyone ever said this to you?
If the answer is Yes, then this post is for you, and for all the people, who chose to listen to their heart, their gut and feelings, rather than calculating every thing prior to engagement.
You are awesome! You are simply awesome the way you function. You are among the rare ones who have the capacity to forget, capacity to forgive! And it’s not everyone's cup of tea!
This makes you stronger than those who are asking you to change. The reality is that they want to be like you but oh gosh! you have set such high standards for them. Hence, they try to change you, change you in a way that could satisfy their ego, change you in a way that could lower down the standards for them.
Few things in life do not always have to be measured. They just work out if you show acceptance. I believe that the beauty of life lies in an inquisitive mind which sees everything just as magic, just like a baby, as if everything is working in it’s favor.
Acceptance negotiates the need of adjustment as well.
One can adjust in terms of Job, opportunities and such materialistic stuffs, but if you are being asked to change your innate nature, you know that you need to change the situation and the vibes around you.
Once you respect the way other person functions mentally as well as emotionally, all the so called adjustments too feel like joy.
So, as they say, "Don't hurry, don't worry, trust the process!" Everything will fall into place when it is the right time.
All I just want to say is - Don't try to change yourself to seek acceptance from others. You have been made like this by the Supreme power for some purpose. Identify that and keep going!
Good Luck!!
Saturday, 1 December 2018
हार में जीत
इंसानी फ़ितरत है कि जब किसी चीज़ में हार का सामना करना पड़ता है तो मन में दुःख, क्रोध और द्वेष के भाव पनपते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, जिस काम के लिए हमने मेहनत की हो, उसमें सफलता न मिले तो दुखी होना स्वाभाविक है। परन्तु सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि सुख- दुःख कि तरह हार और जीत भी जीवन के अटूट अंग हैं। हार के बिना न जीत का कोई वजूद है न जीतने वाले का। फिर चाहे यह असफलता किसी छोटी-मोटी परीक्षा में हो या ज़िन्दगी के किसी अहम मुकाम पे। परन्तु किसी भी तरह की हार को दिल से लगा लेना, खुद को छोटा समझना, टूट जाना या दुनिया के तौर- तरीकों को गलत ठहराना कहाँ तक उचित है? मेरा मानना है कि अपनी हार को स्वीकार करके अपनी कमज़ोरियों और गलतियों को परखना और उनसे शिक्षा ले के अपने व्यक्तित्व का विकास करना ही ज़िन्दगी कि सबसे बड़ी सफलता है। गलतियां करने के बाद उनसे सीख लेने वाले को ही इंसान कहते हैं और यही इंसानियत का सबसे बड़ा सबूत है। पाठकों को यही कहना चाहती हूँ कि ज़िन्दगी में तुम्हें कहीं पे भी हार मिली है तो वो सिर्फ तुम्हे बेहतर बनाने के लिए है। और इतना याद रखना कि ज़िन्दगी जीतने वाले को नहीं, हारने वाले को चुनती है। वो सिर्फ उन्हें ही ये मौका देगी,जिसके लिए उसने इससे कुछ बड़ा सोच रखा होता है, बस मांगती है तो थोड़ी सी और चाहत और मेहनत। इसी विषय को ले के कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं:
तूने क्या सोचा???
तेरे प्रहार मेरे मनोबल को तोड़ देंगे?
या मेरे आत्मविश्वास को आसानी से निचोड़ लेंगे?
आज़मा के देख ले ‘ज़िन्दगी’ !!
तू पर्वत बन कर खड़ी होगी,
मैं ठंडी बयार सी बहती हुई धीरे-धीरे तेरी परतें उड़ा दूंगी।
तू ज्वाला बन के बढ़ेगी,
मैं बारिश बन कर धीरे-धीरे तुझे बुझा दूंगी।
तू जितना तड़पाएगी,
मैं परिपक्व होती जाऊंगी।
तू जितनी बार गिराएगी,
मैं ऊँची उठती जाऊंगी।
तू जितनी बार गिराएगी,
मैं ऊँची उठती जाऊंगी।
चाहे सपने टूटे या कोई साथ छूटे,
तेरे हर वार पे मुस्कुराती जाऊंगी।
जितनी बार अँधेरे में धकेलेगी,
दीपक कि हलकी लौ से ही रोशनी करती जाऊंगी।
हर इम्तिहान के लिए तैयार हूँ,
अब देखना ये है, कि तू मुझे दोबारा गिरा पायेगी?
कितना ही कष्ट दे ले,
एक दिन तू भी थक जायेगी,
पर मैं तब भी बिना किसी शिकायत,
मुस्कुराती हुई मिलूंगी,
उस दिन सारी दुनिया,
बल्कि मेरा भगवान् भी कहेगा,
कि तूने क्या जिया?
जीवन ने तुझे जिया!!