Sunday, 25 April 2021

गौरा -एपिसोड 1

"गौरा, ओ गौरा! तू फिर से आ के इस हवेली के सामने खड़ी हो गयी| कितनी बार समझाया है कि यहाँ मत आया कर| चल घर चल|"

डाँटते हुए गौरा की माँ उसे घर ले जाने लगी| उसकी चमक भरी आँखें फिर भी हवेली को ताकती रहीं| यही तो उसकी छोटी सी उम्र की एक छोटी सी चाहत थी- हवेली के अंदर जाना! बस एक बार| बस एक बार वो देखना चाहती थी कि कैसे होते हैं ये लोग| इनका घर कैसा होता है| ये भी हमारी ही तरह होते हैं या भगवान ने कुछ अलग तरीके से बनाया है इन्हें| क्यों इनकी बग्घी निकलते ही सब लोग अपने घरों में घुस जाते हैं| क्यों उनसे सम्बंधित किसी भी चीज़ को छूने से या उनके आस पास जाने से घरवाले मना करते हैं| उसके 10 साल के छोटे से दिमाग में कितने ही सवाल घूमते रहते थे| पर जवाब कोई नहीं देता था| न माँ, न बाऊजी और न ही भाई कुछ बोलता था| उसके मन की बढ़ती हुई जिज्ञासा ने भी जैसे कसम खा ली थी कि एक बार तो अंदर जाकर ही रहेगी| और उसे वहाँ छोटी माँ को भी तो देखना था| छोटी माँ- सारे कस्बे में चर्चा होती थी उनकी| पर उनकी शक्ल आज तक कोई देख नहीं पाया था| पर वो तो करके रहेगी ये काम| और उसे अपनी धमाल चौकड़ी में अपनी इज़्ज़त भी तो बढ़ानी थी| सोचते सोचते उसे खुद में एक आत्म विश्वास का एहसास हुआ| हाँ! जल्द ही वो जाएगी उस घर में, जिसे हवेली कहा जाता है| 

घर आते ही माँ ने बाऊजी से शिकायत करनी शुरू करदी, "देखो जी, फिर से हवेली के सामने जा कर खड़ी हो गयी| समझाते क्यों नहीं कुछ!" 
बाऊजी की तो लाडली थी गौरा| उसे डाँटना उनके बस में कहाँ! बस मुस्कुरा दिए| गौरा ही बोल उठी, "ये बड़े लोग इतने गुप्त क्यों रहते हैं, सामने क्यों नहीं आते? हम कोई उनको खा थोड़े ही जाएँगे?"
इस बार बाऊजी बोल उठे, "चुप कर लाडो! वहाँ हम नहीं जाते|"
"क्यों हम में क्या कमी है?" गौरा चुप नहीं रह पा रही थी| उसके प्रश्नों की गर्मी और उसके अंदर की छिपी जिज्ञासा को बाऊजी समझ रहे थे| पर सोचते थे कि बच्ची ही है, क्या कर लेगी| फिर उसे समझाए, "वो बड़े लोग हैं| हमारी जात बिरादरी से ऊपर और हमारी हैसियत उनके रुतबे से नहीं मिलती| इसलिए हम उनसे नहीं मिल सकते|"
गौरा को इन बातों से संतुष्टि नहीं हुई| कहते हैं कि बच्चे भगवान के सबसे नज़दीक होते हैं क्योंकि वो बहुत सरल और सहज होते हैं| बाऊजी की बड़ी बड़ी बातें गौरा के कानों के ऊपर से निकल गईं| जात बिरादरी और हैसियत का फर्क उसका छोटा सा दिमाग नहीं समझ पाया था| वो तो बस खुली आँखों से एक ही सपना देखती थी- हवेली को अंदर से देखने का| 

__________क्रमशः अगले भाग में____________

Tuesday, 5 May 2020

Book Review: The Zahir by Paulo Coelho

Completed another book from one of my favourite author. I know I am very late in reading this book but as they say, "Better late than never". I love Paulo Coelho's writings because somewhere I feel connected with whatever he writes. Not only me, I think most of his readers feel the same way. He has written about a very relevant thing in everyday life which is simple looking yet complex to understand, easy sounding yet difficult to implement and that is: the intriguities and complexities of a Husband- Wife relationship. 
We think that the most important thing in any relationship is Love but sometimes, Love, alone, is not just enough. The requirement is much bigger and taller than that. There are many elements that are part of Love but are ignored usually. Bollywood has moulded our generation mindset to think that Love can conquer anything. May be it can, but what it doesn't teach us is 'How to keep it alive for the rest of our lives'. And there my dear, loses many.

So, what it is according to Paulo:
- The Support System: You need to support your partner with all your might and may be beyond that. But that doesn't mean that one starts taking the other for granted. It should always be both sided. 
- Lifting each other up: You should always keep lifting your partner up in the area where he/she feels happy. Lifting doesn't mean in terms of Job only or money related matters but everything that makes the other person happy and the life worth living. You should keep on reminding them their 'Higher purpose of living'.
- Never de-prioritize yourself: In the process of living for your partner, you should never lose 'Yourself' on the way. Keep yourself happy first in order to maintain a healthy relationship. Then only it can be an effortless relationship.
- Chase your dreams: Marriage doesn't mean that you stop dreaming and quit working on them in order to live a monotonous and machinery life as stated by society. Stopping to chase your dreams is equivalent to stop living before you are dead, no matter how crazy they are.
- Provide Space: Personal space is a very important thing and both should always respect it. This keeps a bond of love intact and gives chance to the other to develop and grow freely. You can grow together when you grow independently.
- Respect the differences: Two people spending their life together need not have same view points on everything. Find a way so that both the opinions can co-exist.
- Follow your heart: Last but not the least, always follow your heart. If it is meant to be yours, it will always wait. God always gives you signals ('Omens', in Paulo's language), you just have to be patient enough and smart to recognize them.

Note: Everybody draw learnings from a book or an event based on their understanding and perceptions. I believe that nothing is right or wrong but situational. Open to know your opinions on this. 

Thank you!!

Tuesday, 7 April 2020

मनोदशा

1. जब पापा को हर बात में बचत की चिंता सताये, 
जब मम्मी घर संभालने के नुस्खे सिखलाये, 
जब भाई को अचानक ही तुमपे प्यार बढ़ जाये, 
जब बहन लड़ने की जगह बात मानने लग जाये, 
तो समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

2. "बेटा अब शादी लायक हो गयी हो, कोई है मन में बसा तो बताओ, 
हमारे भी कुछ अरमान हैं, उनपे ना पानी बरसाओ!"
तुम्हारे खाने की हमेशा तारीफ करने वाली दादी, उसमें कमियां जब गिनाने लग जाये, 
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

3. "घर कब आ रही हो, एक लड़के से मिलाना है, 
अच्छी तनख्वाह लेता है, अच्छा घर और टिकाना है!"
बस हाँ कर दो तो तुम्हारी शादी की तैयारियों में लग जाएं, 
 समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

4. "कैसे एक बार मिल के समझ जाऊँ सही है या नही,
उम्र भर का साथ है, कोई थोड़े दिनों की बात नहीं!"
मन तुम्हारा हज़ारों आशंकाओं और सवालों से भर जाए, 
पर घरवालों से लड़ने का साहस न जुटा पाए,
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

5. "बाकी सब तो ठीक है, पर नौकरी की कोई ज़रूरत नहीं,
थोड़ी और तस्वीरें भेजिए, इनमें चेहरा ठीक से दिखा नहीं!"
ये सब सुन सुन के आत्मविश्वास तुम्हारा डगमगाने लग जाये, 
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

6. "अच्छा घर बार न भी हो पर अच्छा व्यवहार होना चाहिए, 
पैसा कम कमाता हो पर दिल में प्यार होना चाहिए!"
हर वक़्त लगता हो कि तुम्हें कोई समझ न पाए, 
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

7. "हम माँ बाप हैं तुम्हारे, तुम्हारा भला ही सोचेंगे, 
तुम्हारी मर्ज़ी के बिना तुमपे कुछ नहीं थोपेंगे!"
घरवालों से जब एक अलग सा रिश्ता महसूस होने लग जाये,
उनसे दूर होने का ख़याल तुम्हें रुलाने लग जाये,
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

8. "मैंने तुम्हारे blogs पढ़े, अच्छा लिखती हो,
काफी अच्छे विचार लगे, मेरी तरह ही जज़्बाती हो!"
ऐसा कोई जब तुम्हें अंदर से टटोलने लग जाये, 
शक्ल से ज़्यादा भी तुम कुछ हो, ऐसा कुछ एहसास कराये,
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम|

9. उसके साथ बातें करके तुम्हें लगे, खुद से ही बातें कर रहे हो तुम,
उसके साथ हर दिन एक celebration बन जाये, 
तुम खुद से ज़्यादा प्यार करने लग जाओ और भगवान पे भरोसा बढ़ जाए,
समझ लो उस घर में थोड़े दिन की ही मेहमान हो तुम,
क्योंकि शादी के लिए अब तैयार हो तुम!!

Wednesday, 9 October 2019

ਡਰ


ਮੈਨੂੰ ਡਰ ਲੱਗਦਾ ਹੈ,
ਉਸਦੀ ਵਾਰ ਵਾਰ ਦੀ ਨਾਂ ਤੋਂ,
ਉਸਦੇ ਅਸਥਿਰ ਖ਼ਿਆਲਾਂ ਤੋਂ,
ਜੋ ਭੱਜਦੇ ਨੇ ਹਰ ਰੋਜ਼ ਇੱਕ ਨਵੀਂ ਦਿਸ਼ਾ ਵਿੱਚ|
ਤੇ ਮੈੰ, ਮੈੰ ਪਿੱਛੇ ਰਹਿ ਜਾਂਦੀ ਹਾਂ, ਬਹੁਤ ਪਿੱਛੇ|
ਫਿਰ ਸੋਚਦੀ ਹਾਂ ਕਿ ਫੜ੍ਹ ਕਿ ਤਾਂ ਨਹੀਂ ਰੱਖ ਸਕਦੀ,
ਜਿਸਨੇ ਵਾਪਿਸ ਆਉਣਾ ਹੈ, ਆਪੇ ਆਵੇਗਾ|
ਪਰ ਫਿਰ ਡਰ ਜਾਂਦੀ ਹਾਂ,
ਜੇ ਵਾਪਿਸ ਨਹੀਂ ਆਇਆ ਤੇ?
ਕਿ ਮੈਂ ਤਿਆਰ ਹਾਂ ਉਹਨਾਂ ਹਾਲਾਤਾਂ ਲਈ?
ਕਿ ਮੈਂ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਪਾ ਰਹੀ ਹਾਂ? - ਸ਼ਾਇਦ ਨਹੀਂ|
ਸ਼ਾਇਦ ਮੇਰੀ ਜ਼ਿੰਦਗੀ ਦਾ ਇਹੀ ਲੇਖ ਹੈ,
ਇਸ ਸਥਿਤੀ ਵਿੱਚੋਂ ਗੁਜ਼ਰਨਾ|
ਪਰ ਮੈਨੂੰ ਇਹ ਵੀ ਪਤਾ ਹੈ,
ਕਿ ਮੈਂ ਇੱਕ ਵਾਰੀ ਅੱਗੇ ਵੱਧ ਗਈ,
ਤਾਂ ਵਾਪਿਸ ਨਹੀਂ ਆ ਪਾਵਾਂਗੀ, ਕਦੇ ਵੀ ਨਹੀਂ|

Tuesday, 13 August 2019

I won't quit "working"

Do you really think that one works just to earn money?

I work because that gives me challenges along with the strength to deal with them and find the solutions.  If not a solution, I atleast get a lesson. In the course of action, I deal with many minds around. Consciously or sub- consciously, I deal with their thought process and their way of carrying things out. 

I feel alive when I thrive myself to find and implement solutions to the problems that I face. It makes me feel as if I was able to bring a tiny difference which in turn makes me feel alive, fulfilled and valued in my own eyes.

So, when I say that I won't stop working, Is that too much to ask for? I understand you might not need my salary but then Sorry Boss!.. How is your Lakhs or Crores helping me find my own sense of achievement? I am a free soul inside, Don't try to trap me, else I will be suffocated. Not even your money will be able to help me in that case. 

Please understand that not every girl dreams of a rich guy or an easy life. I,  infact, want to be a part of every struggle that you do to make a living. I will feel proud to contribute as much as I could in that. Don't take that happiness, that sense of satisfaction away from me.

If you accept my aspirations along with me, I will devote myself to you.
        And that's a promise.

Yours truly
A struggling girl

Saturday, 20 July 2019

A Heart that over-feels❣️

"Dil se nhi Dimaag se socha karo" - Has anyone ever said this to you?

If the answer is Yes, then this post is for you, and for all the people, who chose to listen to their heart, their gut and feelings, rather than calculating every thing prior to engagement.

You are awesome! You are simply awesome the way you function. You are among the rare ones who have the capacity to forget, capacity to forgive! And it’s not everyone's cup of tea!

This makes you stronger than those who are asking you to change. The reality is that they want to be like you but oh gosh! you have set such high standards for them. Hence, they try to change you, change you in a way that could satisfy their ego, change you in a way that could lower down the standards for them.

Few things in life do not always have to be measured. They just work out if you show acceptance. I believe that the beauty of life lies in an inquisitive mind which sees everything just as magic, just like a baby, as if everything is working in it’s favor.

Acceptance negotiates the need of adjustment as well.
One can adjust in terms of Job, opportunities and such materialistic stuffs, but if you are being asked to change your innate nature, you know that you need to change the situation and the vibes around you.
Once you respect the way other person functions mentally as well as emotionally, all the so called adjustments too feel like joy.

So, as they say, "Don't hurry, don't worry, trust the process!" Everything will fall into place when it is the right time.

All I just want to say is - Don't try to change yourself to seek acceptance from others. You have been made like this by the Supreme power for some purpose. Identify that and keep going!

Good Luck!!

Saturday, 1 December 2018

हार में जीत

इंसानी फ़ितरत है कि जब किसी चीज़ में हार का सामना करना पड़ता है तो मन में दुःख, क्रोध  और द्वेष के भाव पनपते हैं। ऐसा होना स्वाभाविक भी है, जिस काम के लिए हमने मेहनत की हो, उसमें सफलता न मिले तो दुखी होना स्वाभाविक है। परन्तु सिक्के का दूसरा पहलू ये भी है कि सुख- दुःख कि तरह हार और जीत भी जीवन के अटूट अंग हैं। हार के बिना न जीत का कोई वजूद है न जीतने वाले का। फिर चाहे यह असफलता किसी छोटी-मोटी परीक्षा में हो या ज़िन्दगी के किसी अहम मुकाम पे। परन्तु किसी भी तरह की हार को दिल से लगा लेना, खुद को छोटा समझना, टूट जाना या दुनिया के तौर- तरीकों को गलत ठहराना कहाँ तक उचित है? मेरा मानना है कि अपनी हार को स्वीकार करके अपनी कमज़ोरियों और गलतियों को परखना और उनसे शिक्षा ले के अपने व्यक्तित्व का विकास करना ही ज़िन्दगी कि सबसे बड़ी सफलता है। गलतियां करने के बाद उनसे सीख लेने वाले को ही इंसान कहते हैं और यही इंसानियत का सबसे बड़ा सबूत है। पाठकों को यही कहना चाहती हूँ कि ज़िन्दगी में तुम्हें कहीं पे भी हार मिली है तो वो सिर्फ तुम्हे बेहतर बनाने के लिए है। और इतना याद रखना कि ज़िन्दगी जीतने वाले को नहीं, हारने वाले को चुनती है। वो सिर्फ उन्हें ही ये मौका देगी,जिसके लिए उसने इससे कुछ बड़ा सोच रखा होता है, बस मांगती है तो थोड़ी सी और चाहत और मेहनत। इसी विषय को ले के कुछ पंक्तियाँ लिखी हैं:


तूने क्या सोचा???

तेरे प्रहार मेरे मनोबल को तोड़ देंगे?

या मेरे आत्मविश्वास को आसानी से निचोड़ लेंगे?

आज़मा के देख ले ‘ज़िन्दगी’ !!

तू पर्वत बन कर खड़ी होगी,

मैं ठंडी बयार सी बहती हुई धीरे-धीरे तेरी परतें उड़ा दूंगी।

तू ज्वाला बन के बढ़ेगी,

मैं बारिश बन कर धीरे-धीरे तुझे बुझा दूंगी।

तू जितना तड़पाएगी,

मैं परिपक्व होती जाऊंगी।

तू जितनी बार गिराएगी,

मैं ऊँची उठती जाऊंगी।

तू जितनी बार गिराएगी,

मैं ऊँची उठती जाऊंगी।

चाहे सपने टूटे या कोई साथ छूटे,

तेरे हर वार पे मुस्कुराती जाऊंगी।

जितनी बार अँधेरे में धकेलेगी,

दीपक कि हलकी लौ से ही रोशनी करती जाऊंगी।

हर इम्तिहान के लिए तैयार हूँ,

अब देखना ये है, कि तू मुझे दोबारा गिरा पायेगी?

कितना ही कष्ट दे ले,

एक दिन तू भी थक जायेगी,

पर मैं तब भी बिना किसी शिकायत,

मुस्कुराती हुई मिलूंगी,

उस दिन सारी दुनिया,

बल्कि मेरा भगवान् भी कहेगा,

कि तूने क्या जिया?

जीवन ने तुझे जिया!!