उम्मीदों के आँचल को,
कभी छूटने न दिया;
घर से निकल कर मुझे,
पूरी दुनिया ने अपना बना लिया। 
रुकावटें मुश्किलें आएँगी राहगुज़र में,
खुद को इस डर से कभी टूटने न दिया। 
मेरी हर कोशिश से रोशन हुआ हर काम मेरा,
इसीलिए शायद इस शहर ने मुझे अपना मान लिया। 
मंज़िलें चाहे जैसी हों, जितनी हों, जहाँ हों,
चलकर गिरना, गिरकर संभलना, है अब काम मेरा। 
